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मोदी का लॉकडाउन झूठ पर आधारित है; इसके पीछे बिल गेट्स का शैतानी एजेंडा है

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मोदी ने बिल गेट्स के शैतानी एजेंडे के तहत भारत के 100 करोड़ लोगों के सामाजिक जीवन और रोज़गार को तहस-नहस कर दिया है. मज़दूर, कारीगर और छोटा व्यापार करने वाले लगभग 40 करोड़ लोगों को कंगाली या भुखमरी के कगार पर धकेल दिया है.
यह लॉकडाउन झूठ और छल-कपट पर आधारित है.
कोरोना वायरस की बीमारी न तो उतनी जानलेवा है जितनी अख़बारों में और टीवी पर बताई जा रही है और न इतनी संक्रामक कि 1.38 अरब लोगों के पूरे देश को बंद करके घरों में क़ैद कर दिया जाए.
क्वारंटाइन (अलग-थलग) हमेशा बीमार या संदिग्ध व्यक्ति को किया जाता है, न कि स्वस्थ व्यक्ति को.
घर में जिसे सर्दी-ज़ुकाम होता है वो अलग-थलग होकर आराम करता है; पूरा परिवार काम-धंधा छोड़ कर लॉकडाउन नहीं हो जाता।
कोरोना-वायरस से संक्रमित व्यक्ति को केवल 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाता है, जबकि मोदी की सड़क-छाप नीम-हकीमी के तहत भारत के 100 करोड़ से अधिक अप्रभावित व्यक्ति भी आज 40 दिन से क्वारंटाइन कारावास झेल रहे हैं.
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से हुई मौतों के आंकड़े फ़र्ज़ीवाड़ा करके बनाए गए हैं. इस फ़र्ज़ीवाड़े का मक़सद है लोगों को डराना ताकि वो लॉकडाउन और तानाशाही को चुपचाप स्वीकार करते रहें, अपने बाज़ार और रोज़गार उजड़ने पर विरोध करने के भी क़ाबिल न रहें, और भयवश बिल गेट्स-का-बनवाया-हुआ वैक्सीन का टीका भी लगवा लें.
दुनिया भर में 30 अप्रैल तक लगभग 2,31,000 'कोरोना वायरस मौतें'दर्ज की गईं. इन मृतकों में 99 प्रतिशत पहले से ही एक या एक से अधिक रोगों से पीड़ित थे. इसलिए इनकी मौतों को 'कोरोना वायरस मृत्यु'कहना भ्रामक है. इन मौतों में कोरोना वायरस केवल एक कारक हो सकता है। और दिलचस्प बात ये है की मृतकों की कुल संख्या में 90 प्रतिशत वृद्ध थे.
उदाहरण के तौर पर यदि एक 72-वर्षीय मधुमेह और हृदय-रोग से ग्रस्त व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और वो मृत्यु से पहले या बाद में किए टेस्ट में कोरोना-संक्रमित पाया जाए तो उसे 'कोरोना वायरस मौत'के आंकड़े में डाल दिया जाता है -- जबकि उस व्यक्ति की जांच करने वाला डॉक्टर भली-भांति जानता है कि उसकी मौत का मुख्य कारण उसके शरीर में पहले से मौजूद रोग या वृद्धावस्था की निर्बलता थी.
अमरीका में तो कोरोना वायरस का टेस्ट किए बिना केवल शक की बुनियाद पर ही कोरोना वायरस मौतों के आंकड़े धड़ाधड़ बढ़ाए गए. इन आंकड़ों के ज़रिए डर का माहौल बनाया गया ताकि लॉकडाउन की तानाशाही का औचित्य बना रहे.
भारत में कोरोना वायरस के खाते में डाले गए मृतकों में लगभग 83 प्रतिशत ऐसे लोग थे जो पहले से मौजूद रोगों से पीड़ित थे. इसलिए कोई डॉक्टर भी यदि ये दावा करे कि वे लोग कोरोना वायरस बीमारी की वजह से मारे गए तो ये एक भ्रामक दावा होगा।  
भारत में कोरोना वायरस के सक्रमण की दर केवल 10 प्रति दस लाख है यानि 10 लाख लोगों में केवल 10 में ये वायरस पाया जा रहा है. इन 10 में भी 7-8 को कुछ नहीं होगा। बाक़ी बचे 2-3 की मृत्यु की संभावना भी तभी होगी जब वे बुढ़ापे या गंभीर रोगों के कारण कमज़ोर हो चुके हों.
भारत में तथाकथित 'कोरोना वायरस मौतों'की तुलना कुल आबादी से की जाए तो 25 लाख लोगों में केवल एक मृत्यु पाई जा रही है. इस एक मृतक की भी पहले से रोग-ग्रस्त होने या वृद्ध होने की संभावना बहुत ज़्यादा है।
भारत में 30 जनवरी से (जब देश का पहला कोरोना मरीज़ पाया गया) 30 अप्रैल तक यानि 91 दिनों में कुल 1075 'कोरोना वायरस मौतें'दर्ज की गई - यानि प्रतिदिन 11-12 मौतें.
देश में रोज़ाना सामान्यतः 26,670 मौतें होती हैं (यानि 30 जनवरी से 30 अप्रैल तक कुल 24,26,970 मौतें हुई होंगी।)
देश में रोज़ाना होने वाली 26,670 मौतों में केवल 11-12 मौतें कोरोना वायरस के खाते में गईं - यानि केवल 0.044 है जो कि एक महत्वहीन संख्या है.  इस महत्वहीन संख्या में भी कोई गिना-चुना मृतक ही होगा जिसके बारे में कोई डॉक्टर दावे के साथ कह सके कि वो केवल कोरोना वायरस बीमारी की वजह से मरा है.
इस महत्वहीन संख्या के आधार पर मोदी ने पूरा देश बंद कराया, करोड़ों लोगों का रोज़गार छीना, उनसे फ़ेस-मास्क और 'सोशल डिस्टैन्सिंग' (शारीरिक दूरी बनाकर रखना) की सर्कस करवाई जा रही है और जनता पर पुलिस का आतंक भी बरसवाया जा रहा है।
सर्द इलाक़ों यानि यूरोप और अमरीका में कोरोना वायरस की मारक क्षमता मौसमी फ़्लू की मारक क्षमता से अधिक नहीं है - यानि 1000 में केवल एक व्यक्ति की मृत्यु की संभावना है वो भी तब जब वो व्यक्ति वृद्ध या पुराना रोगी हो.
याद रहे यूरोप और अमरीका में भी 'कोरोना वायरस मौतों'के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का फ़र्ज़ीवाड़ा चल रहा है क्योंकि वहां भी ऐसे नेता हैं जो बिल गेट्स जैसे क़ातिलों के साथ मिल कर लोकतंत्र का ख़ात्मा करके जनता पर तानाशाही थोपना चाहते हैं.
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) बिल गेट्स की जेब में है क्योंकि WHO को बिल गेट्स से अरबों डॉलर की फ़ंडिंग मिलती है.
कोरोना वायरस महामारी नहीं है बल्कि महामारी का ढोंग है. इस ढोंग की साज़िश पिछले कई सालों से रचाई जा रही है. इस साज़िश में बिल गेट्स, रॉकफ़ेलर, जॉर्ज सोरोस, मार्क ज़करबर्ग जैसे दुनिया के अमीर-तरीन लोग शामिल हैं. भारत के अरबपति जैसे मुकेश अम्बानी, टाटा, एन आर नारायणमूर्ती और नंदन नीलकेणि भी इस षड्यंत्र में सम्मिलित हैं.
बिल गेट्स ने भारत सरकार को अपनी कठपुतली बनाने के लिए 2006 में पब्लिक हेल्थ फॉउंडेशन ऑफ़ इंडिया (PHFI) नाम की संस्था बनाई जिसके गवर्निंग बोर्ड में भारत के उक्त अरबपति बैठे हैं.
इस अवैध संस्था को 'पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप' (PPP) के नाम पर भारत सरकार में घुसाने में सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह ने विशेष भूमिका निभाई। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने PHFI को गांधीनगर में पब्लिक हेल्थ स्कूल खोलने के लिए ज़मीन और पैसा दिया.
उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय इस राजशेखर रेड्डी ने भी अपने-अपने राज्यों में PHFI को स्थापित किया।
तब से अब तक बिल गेट्स ने पूरे भारत में अपने पैर पसार लिए हैं और देश के बहुत से नेताओं, अधिकारियों, डॉक्टरों और पब्लिक हेल्थ कार्यकर्ताओं को ख़रीद लिया है.
ये बिके हुए लोग करोड़ों भारतीयों को धोखा देकर इस देश में लोकतंत्र समाप्त कर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं जिसमें सभी नागरिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे, समस्त जनता पर सर्वेलेंस टेक्नॉलजीज़ (निगरानी करने की तकनीकें जैसे 'आरोग्य सेतु एप्प') के ज़रिए लगातार नियंत्रण रखा जाएगा, और जनता को वैक्सीन के टीके लगाने पर मजबूर किया जाएगा।
राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, कोई भी सरकारी सुविधा, रेल यात्रा और रोज़गार के लिए वैक्सीन के सर्टिफ़िकेट (प्रमाण पत्र) दिखाने पड़ेंगे. 
बिल गेट्स के वैक्सीन के टीकों से अभी तक अफ़्रीका और एशिया में हज़ारों लोग मौत के घाट उतर चुके हैं. साल 2009 में बिल गेट्स की संस्था ने आंध्र प्रदेश और गुजरात में 30000 स्कूली बच्चों को HPV वैक्सीन के टीके लगवाए जिसके बाद सैकड़ों बच्चे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और सात बच्चों ने दम तोड़ दिया।
(बिल गेट्स के एजेंडा में 'डीपॉपुलेशन'यानि आबादी घटाना भी शामिल है. वो सार्वजनिक तौर पर कह चुका है कि वो वैक्सीन के ज़रिए दुनिया की आबादी कम करना चाहता है.)     
भारत की सरकार और न्याय व्यवस्था में इतना दम नहीं है कि बिल गेट्स को इन जघन्य अपराधों और हत्याओं की सज़ा दे सके. सज़ा देना तो रही दूर की बात, मोदी ने बिल गेट्स की आपराधिक संस्थाओं को अपनी हिफाज़त में रखा हुआ है.
लोकतंत्र का गला घोंट कर बनाई जा रही इस नई व्यवस्था को 'न्यू नॉर्मल'का कोडवर्ड (गुप्त नाम) दिया गया है. इस नई व्यवस्था में संपूर्ण नोटबन्दी करके केवल डिजिटल करंसी लागू की जाएगी। सभी छोटे कारोबारों और व्यापारों को ख़त्म करके ऐमेज़ॉन, वालमार्ट और माइक्रोसॉफ़्ट जैसी दुनिया की सबसे मालदार कंपनियों को ही बिज़नेस करने का अधिकार होगा। आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके लाखों रोज़गारों को ख़त्म कर दिया जाएगा।
करोड़ों कारीगरों और छोटे और मंझोले उद्यमी और व्यापारियों की स्वायत्तता ख़त्म हो जाएगी और वे अपनी रोज़ी-रोटी के लिए मालदार कंपनियों के मोहताज हो जाएंगें।
मोदी ने करोड़ो लोगों के जीवन और आजीविका को उजाड़ कर इस 'न्यू नॉर्मल'की बुनियाद रख दी है. मार्किट से भगाए हुए छोटे व्यापारियों के कारोबार पर बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया है -- मानो छोटे व्यापारियों से एक झटके में अरबों रूपये लूट कर बड़ी कंपनियों के एकाउंट्स में डाल दिए गए हों.
अरबों की डकैती के करने के बाद मोदी शहरों से दर-ब-दर किए गए लाखों मज़दूरों और छोटे व्यापारियों को 'आरोग्य सेतु एप्प'डाउनलोड करने की नसीहत दे रहा है ताकि इन बेचारों की मुजरिमों की तरह सर्वेलंस (निगरानी) कराई जा सके और उन्हें प्रतिरोध करने के क़ाबिल भी न छोड़ा जा सके.
मोदी सरकार अब मिलिट्री स्तर के इंटेलिजेंस उपकरणों को आम जनता की निगरानी के लिए प्रयोग करेगी। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाली कंपनी 'ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टैंट्स इंडिया लिमिटिड' (BECIL) ने 10 अप्रैल को 'COVID-19 पेशंट ट्रैकिंग टूल'के लिए टेंडर आमंत्रित किए हैं. टेंडर डॉक्युमेंट में इस टूल को 'इंटेलिजेंस इन्वेस्टिगेशन प्लेटफार्म एंड टैक्टिकल टूल'बताया गया है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराते ख़तरों की टोह ली जा सकती है.
इसी टूल को आम जनता की निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
ये समय है आरोग्य सेतु एप्प और COVID-19 पेशंट ट्रैकिंग टूल जैसी सर्वेलेंस तकनीकों और कैशलेस और वैक्सीन एजेंडे को अस्वीकार करने का, छोटे कारोबारियों से साथ खड़े होने का, और लोकतंत्र को तबाही से बचाने का.
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