In Nov.2017, I posted this article written in Urdu by Pakistani writer Zunaira Saqib in which she drew a stark picture of the hate-filled propaganda against India and non-Muslims, particularly 'Hindus', which school-children in Pakistan are subjected to, day in, day out.
Zunaira Saqib has published on 06 Sep.2018 a follow-up on that article, citing a few instances of such propaganda contained in prescribed text-books.
A lot of such propaganda and falsehoods are included in 'Pakistani Studies,' which is a compulsory subject taught in all schools in Pakistan.
'Pakistani Studies' is known in Urdu as 'Mutaal'a-e-Pakistan' ('मुतालआ-ए-पाकिस्तान').
I have posted here the Devnagari transcript of Zunaira Saqib's follow-up article with explanations of some Urdu words and phrases and glosses to some references in the original text that Indian readers may not be familiar with.
Zunaira Saqib teaches management and HR at NUST Business School in Islamabad and also writes columns for newspapers and magazines.
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मैंने 21 नवम्बर 2018 को ज़ुनैरा साक़िब का एक लेख पोस्ट किया था, जिसमें इस पाकिस्तानी लेखिका ने अपने देश के स्कूलों में भारत और ग़ैर-मुस्लिमों के ख़िलाफ़ -- विशेष कर 'हिन्दुओं'के ख़िलाफ़ -- नफ़रतें फैलाने की समस्या की निशानदेही की थी.
ज़ुनैरा ने उस लेख का एक फॉलो-अप आर्टिकल लिखा है, जो इस महीने प्रकाशित हुआ है और जिसका देवनागरी लिप्यंतरण मैंने यहाँ पोस्ट किया है. कुछ उर्दू शब्द और पाकिस्तानी सन्दर्भ ब्रैकेट्स में समझाए गए हैं.
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गुज़िश्ता तहरीर पर काफ़ी तनक़ीद हुई. (पहले लेख की बहुत आलोचना हुई.)
कुछ पढ़ने वालों ने कहा कि पाकिस्तान तो ऐसा नहीं है. कुछ कहने लगे हम भी स्कूल से पढ़ कर आए हैं; हम ने कभी ऐसा कोई टीचर नहीं देखा, हमारे साथ भी अक़लियतें (अल्पसंख्यक) पढ़ती थीं, उनसे तो कभी हम ने बुरा सुलूक होते नहीं देखा।
कुछ लोगों ने इलज़ाम दे डाला कि पैसे लेकर यह सब लिखा गया है और मुझे इंडिया या इसराइल हिजरत (प्रवास) कर जानी चाहिए।
अब हिजरत बन्दे ने करनी ही है तो कैनेडा या ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ करेगा ना! इंडिया में कौन से लड्डू मिल रहे हैं? और इसराइल में तो आप को पता ही है हमारा दाख़िला ही ममनू (निषिद्ध) है.
बहर-हाल... फ़ैसला यह किया कि बजाए एक एक को जवाब देने के इस तहरीर में वह रेफ़रेंस दे दूँ जिस को देख कर शायद दोस्तों की आँखें खुल जाएँ।
अगर आपके हाज़मे के लिए यह तहरीर भी ज़ूद-हज़म (सुपाच्य) न साबित हो तो मेहरबानी फ़रमा कर यहाँ पर ही सलवातें सुना दीजिएगा (बुरा-भला सुना दीजिएगा); इनबॉक्स में एक एक करके जवाब देना मुश्किल होता है.
पाकिस्तान में इस्लामियात (इस्लाम का ज्ञान) और मुतालआ-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान अध्ययन) लाज़मी मज़ामीन (अनिवार्य विषय) हैं.
ताहम (फिर भी) अगर आप ग़ैर-मुस्लिम हैं तो आप के लिए इस्लामियात लाज़मी मज़मून (अनिवार्य विषय) नहीं है. आप इस की जगह Ethics यानि अख़लाक़यात (नीति शास्त्र) पढ़ सकते हैं.
बात तो बहुत अच्छी है, लेकिन क्या आप को पता है कि पाकिस्तान में कितने स्कूल अख़लाक़यात का मज़मून पढ़ाते हैं?
चलें आप की मालूमात के लिए अर्ज़ है कि पिछले साल KPK (ख़ैबर पख़्तूनख़्वा) की हुकूमत ने सूबे की तारीख़ में पहली दफ़ा अख़लाक़यात की किताबों पर काम शुरू किया है. इस से पहले अख़लाक़यात की किताब का कोई वजूद ही नहीं था.
यही हाल सिंध में है, जहाँ जामशोरो बोर्ड ने पहली दफ़ा अख़लाक़यात की किताब को निसाब (पाठ्यक्रम) में शामिल किया है.
यह है जनाब आप के सरकारी स्कूलों का हाल; जब किताब ही नहीं, निसाब ही नहीं तो बच्चों ने इस्लामियात ही पढ़नी है. मैं ख़ुद बहुत सारे तालिब-इल्मों (छात्रों) से मिली हूँ जो कि किसी और मज़हब से ताल्लुक़ रखते हैं लेकिन चारों क़ुल (क़ुरआन की चार सूरतें) उनको फ़र-फ़र आते हैं. वजह? अख़लाक़यात का मज़मून था नहीं तो स्कूलों में इस्लामियात पढ़ना पड़ी.
अब प्राइवेट स्कूलों की तरफ़ आ जाएँ। सिवाए चर्चों से मुन्सलिक (जुड़े हुए) स्कूलों के ज़्यादा-तर स्कूल इस मज़मून को ऑफ़र ही नहीं करते। इस की वजह? वजह यह है कि 50 बच्चों की क्लास में बमुश्किल 1-2 बच्चे अक़लियतों (अल्पसंख्यकों) से ताल्लुक़ रखते हैं. अब 1-2 बच्चों के लिए एक टीचर रखी जाए - यह तो मुनाफ़ा न हुआ ना.
अब बात करते हैं कि हमारी निसाब की किताबों में अक़लियतों के ख़िलाफ़ कहाँ झूठ बोला जाता है और नफ़रत सिखाई जाती है?
बेशुमार मिसालें हैं जो कि यहाँ बयान की जा सकती हैं, लेकिन थोड़े को बहुत समझने पर इक्तिफ़ा (संतोष) करते हुए, कुछ पेश-ए-ख़िदमत हैं. बाक़ी आप ख़ुद ढूँढ लीजिए; अच्छे ख़ासे पढ़े लिखे तो हैं.
फ़ेडरल मिनिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन की सोशल स्टडीज़ की किताब जो कि चौथी क्लास के लिए लिखी गई है कुछ यह बात करती है:
"The Muslims of Pakistan provided all the facilities to the Hindus and Sikhs who left for India. But the Hindus and Sikhs looted the Muslims in India with both hands and they attacked their caravans, buses and trains. Therefore about one million Muslims were martyred on their way to Pakistan."
जी हाँ जानी नुक़सान हुआ था, बहुत ज़्यादा हुआ था, लेकिन हम भी दूध के धुले तो थे नहीं। यहाँ जो मारा मारी आप ने हिन्दुओं और सिखों के साथ की है उसका कोई ज़िक्र ही नहीं।
बस दस साल के बच्चे के दिमाग़ में यह बात डाल देंगें कि हमने उनको कुछ न कहा, हाँ उन्होंने हमारे साथ बहुत ख़ून ख़राबा किया। यह भी आप मज़हब के नाम पर सिखा रहे हैं.
आगे चलिए; इसी किताब में लिखा है कि:
"India invaded Lahore on the 6th of September 1965 without any ultimatum. After 17 days, Indian authorities laid down arms, acknowledging the bravery and gallantry of the Pak Army and civilians."
झूठ पर झूठ... ताशक़ंद मुआहिदे और सीस-फायर का ज़िक्र है। न पाकिस्तान ने हथियार डाले थे और न इंडिया ने. हाँ पाकिस्तान की फ़ौज बहुत बेजिगरी (दिलेरी) से लड़ी और अपने से बहुत बड़ी आर्मी को नाकों चने चबवा दिए. लेकिन क्या यह सच नहीं है कि यह जंग 'ऑपरेशन जिब्रॉल्टर' (Operation Gibraltar) के नतीजे में शुरू हुई थी?
अर्ज़ यह है कि और कुछ नहीं तो 'शहाब-नामा'ही पढ़ लें, जिसमें बहुत से लोगों के पसंदीदा (मेरे नहीं) क़ुदरतुल्लाह शहाब ने इस का ज़िक्र किया है. यह जंग उसी ऑपरेशन के नतीजे में छिड़ी थी.
('ऑपरेशन जिब्राल्टर'पाकिस्तानी फ़ौज ने घुसपैठियों की मदद से जम्मू कश्मीर को हथियाने के लिए जुलाई-अगस्त 1965 में क्रियान्वित किया। यह नाकाम रहा पर इस से बड़ी जंग छिड़ गई जो 17 दिन चलने के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराए 'सीस-फायर'पर समाप्त हुई. जंग का औपचारिक अंत जनवरी 1966 में भारतीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौते से हुआ.
क़ुदरतुल्लाह शहाब - जो अयूब खान के सलाहकार और इनफार्मेशन सेक्रेटरी रहे - ने अपनी आत्मकथा 'शहाब-नामा'में 1965 की जंग का भी ज़िक्र किया है.)
जब हम झूठ पढ़ाते हैं तो बच्चे यह सीख लेते हैं कि हमारा मुल्क सब ठीक करता है ज़्यादती हमेशा हमारे साथ होती है.
अब यह पूछने की जुरअत तो मुझ में नहीं कि कारगिल जंग किस वजह से छिड़ी थी क्योंकि बहुत से लोग उसको भी दिल पर ले जाएँगे।
ख़ैर बात कहीं और निकल गई. चलें नफ़रतों की तरफ़ वापिस चलतें हैं. पंजाब टेक्स्ट-बुक बोर्ड की दसवीं जमाअत की किताब कुछ यह बयान करती है:
"Because the Muslim religion, culture and social system are different from non-Muslims, it is impossible to cooperate with Hindus."
जब आप सीधा-सीधा हिन्दुओं से इतनी नफ़रत सिखाएँगे तो ख़ाक इस मुल्क में अमन आएगा!
पाँच से 15 साल के बच्चे यह सब पढ़-पढ़ कर बड़े होते हैं; हिन्दुओं को अपना क़ुदरती दुश्मन समझते हैं; मार-धाड़ को, जंगों को अपना जीने का तरीक़ा समझते हैं.
फिर आप कहते हैं अमन नहीं है इस मुल्क में!
KPK (ख़ैबर पख़्तूनख़्वा) की एक किताब बच्चों को यह सिखाती है कि अगर ख़ुद जिहाद नहीं कर सकते तो कम से कम जिहाद करने वालों की माली (पैसे से) मदद करो.
फिर लोग पूछते हैं यह जो मदरसे ख़ुदकश (आत्मघाती) हमलावर तैयार करते हैं उनकी फ़ंडिंग कहाँ से आती है.
बांग्लादेश के बारे में भी सुन लीजिए; एक और टेक्स्ट-बुक क्या कहती है:
"A large number of Hindu teachers were teaching in the educational institutions in East Pakistan. They produced such literature which created negative thinking in the minds of Bengalis against the people of West Pakistan."
कहते हैं आधा सच झूठ से ज़्यादा बुरा और ख़तरनाक होता है. बस यह वो आधा सच है जो हम अपने आने वाली नस्लों के दिमाग़ों में घोल रहे हैं. यहीं से बच्चे सीखते हैं कि कैसे अपनी ग़लतियाँ हमेशा दूसरों के सरों पर डाल कर बरी-अज़्ज़मा (ज़िम्मेदारी से आज़ाद) हो जाना है. यहीं से बच्चे सीखते हैं कि इस मुल्क में जो मुक़द्दस गाय (sacred cow) है उसके बारे में बात करना भी ममनू (निषिद्ध) है.
आँखें खोल कर जीना सीख लीजिए। रेत में सर देकर कहते हैं इस मुल्क में कुछ ग़लत नहीं हो रहा. ग़लती तस्लीम करना ख़राबी को सुधारने का सब से पहला क़दम है; यह माना जाए कि कोई ग़लती है.
न हम दूध के धुले हैं, न यह मुल्क हमेशा मुअजज़ों (चमत्कारों) के सहारे चलेगा। आएं आँखें खोलें; और कुछ नहीं तो अपने दिल से नफ़रत की सियाही मिटानी शुरू करें।
लंबा सफ़र है, लेकिन शुरू तो करना चाहिए।
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This post contains the following Web links.
1. https://kbforyou.blogspot.com/2017/11/hindus-are-wicked-people-living-in.html
2. http://www.humsub.com.pk/17846/zunaira-saqib-15/
Zunaira Saqib has published on 06 Sep.2018 a follow-up on that article, citing a few instances of such propaganda contained in prescribed text-books.
A lot of such propaganda and falsehoods are included in 'Pakistani Studies,' which is a compulsory subject taught in all schools in Pakistan.
'Pakistani Studies' is known in Urdu as 'Mutaal'a-e-Pakistan' ('मुतालआ-ए-पाकिस्तान').
I have posted here the Devnagari transcript of Zunaira Saqib's follow-up article with explanations of some Urdu words and phrases and glosses to some references in the original text that Indian readers may not be familiar with.
Zunaira Saqib teaches management and HR at NUST Business School in Islamabad and also writes columns for newspapers and magazines.
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मैंने 21 नवम्बर 2018 को ज़ुनैरा साक़िब का एक लेख पोस्ट किया था, जिसमें इस पाकिस्तानी लेखिका ने अपने देश के स्कूलों में भारत और ग़ैर-मुस्लिमों के ख़िलाफ़ -- विशेष कर 'हिन्दुओं'के ख़िलाफ़ -- नफ़रतें फैलाने की समस्या की निशानदेही की थी.
ज़ुनैरा ने उस लेख का एक फॉलो-अप आर्टिकल लिखा है, जो इस महीने प्रकाशित हुआ है और जिसका देवनागरी लिप्यंतरण मैंने यहाँ पोस्ट किया है. कुछ उर्दू शब्द और पाकिस्तानी सन्दर्भ ब्रैकेट्स में समझाए गए हैं.
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मुतालआ-ए-पाकिस्तान की आख़िरी किताब: सच क्या झूठ क्या
ज़ुनैरा साक़िब, 06 सितम्बर 2018, 'हमसब'मैगज़ीन (पाकिस्तान)गुज़िश्ता तहरीर पर काफ़ी तनक़ीद हुई. (पहले लेख की बहुत आलोचना हुई.)
कुछ पढ़ने वालों ने कहा कि पाकिस्तान तो ऐसा नहीं है. कुछ कहने लगे हम भी स्कूल से पढ़ कर आए हैं; हम ने कभी ऐसा कोई टीचर नहीं देखा, हमारे साथ भी अक़लियतें (अल्पसंख्यक) पढ़ती थीं, उनसे तो कभी हम ने बुरा सुलूक होते नहीं देखा।
कुछ लोगों ने इलज़ाम दे डाला कि पैसे लेकर यह सब लिखा गया है और मुझे इंडिया या इसराइल हिजरत (प्रवास) कर जानी चाहिए।
अब हिजरत बन्दे ने करनी ही है तो कैनेडा या ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ करेगा ना! इंडिया में कौन से लड्डू मिल रहे हैं? और इसराइल में तो आप को पता ही है हमारा दाख़िला ही ममनू (निषिद्ध) है.
बहर-हाल... फ़ैसला यह किया कि बजाए एक एक को जवाब देने के इस तहरीर में वह रेफ़रेंस दे दूँ जिस को देख कर शायद दोस्तों की आँखें खुल जाएँ।
अगर आपके हाज़मे के लिए यह तहरीर भी ज़ूद-हज़म (सुपाच्य) न साबित हो तो मेहरबानी फ़रमा कर यहाँ पर ही सलवातें सुना दीजिएगा (बुरा-भला सुना दीजिएगा); इनबॉक्स में एक एक करके जवाब देना मुश्किल होता है.
पाकिस्तान में इस्लामियात (इस्लाम का ज्ञान) और मुतालआ-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान अध्ययन) लाज़मी मज़ामीन (अनिवार्य विषय) हैं.
ताहम (फिर भी) अगर आप ग़ैर-मुस्लिम हैं तो आप के लिए इस्लामियात लाज़मी मज़मून (अनिवार्य विषय) नहीं है. आप इस की जगह Ethics यानि अख़लाक़यात (नीति शास्त्र) पढ़ सकते हैं.
बात तो बहुत अच्छी है, लेकिन क्या आप को पता है कि पाकिस्तान में कितने स्कूल अख़लाक़यात का मज़मून पढ़ाते हैं?
चलें आप की मालूमात के लिए अर्ज़ है कि पिछले साल KPK (ख़ैबर पख़्तूनख़्वा) की हुकूमत ने सूबे की तारीख़ में पहली दफ़ा अख़लाक़यात की किताबों पर काम शुरू किया है. इस से पहले अख़लाक़यात की किताब का कोई वजूद ही नहीं था.
यही हाल सिंध में है, जहाँ जामशोरो बोर्ड ने पहली दफ़ा अख़लाक़यात की किताब को निसाब (पाठ्यक्रम) में शामिल किया है.
यह है जनाब आप के सरकारी स्कूलों का हाल; जब किताब ही नहीं, निसाब ही नहीं तो बच्चों ने इस्लामियात ही पढ़नी है. मैं ख़ुद बहुत सारे तालिब-इल्मों (छात्रों) से मिली हूँ जो कि किसी और मज़हब से ताल्लुक़ रखते हैं लेकिन चारों क़ुल (क़ुरआन की चार सूरतें) उनको फ़र-फ़र आते हैं. वजह? अख़लाक़यात का मज़मून था नहीं तो स्कूलों में इस्लामियात पढ़ना पड़ी.
अब प्राइवेट स्कूलों की तरफ़ आ जाएँ। सिवाए चर्चों से मुन्सलिक (जुड़े हुए) स्कूलों के ज़्यादा-तर स्कूल इस मज़मून को ऑफ़र ही नहीं करते। इस की वजह? वजह यह है कि 50 बच्चों की क्लास में बमुश्किल 1-2 बच्चे अक़लियतों (अल्पसंख्यकों) से ताल्लुक़ रखते हैं. अब 1-2 बच्चों के लिए एक टीचर रखी जाए - यह तो मुनाफ़ा न हुआ ना.
अब बात करते हैं कि हमारी निसाब की किताबों में अक़लियतों के ख़िलाफ़ कहाँ झूठ बोला जाता है और नफ़रत सिखाई जाती है?
बेशुमार मिसालें हैं जो कि यहाँ बयान की जा सकती हैं, लेकिन थोड़े को बहुत समझने पर इक्तिफ़ा (संतोष) करते हुए, कुछ पेश-ए-ख़िदमत हैं. बाक़ी आप ख़ुद ढूँढ लीजिए; अच्छे ख़ासे पढ़े लिखे तो हैं.
फ़ेडरल मिनिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन की सोशल स्टडीज़ की किताब जो कि चौथी क्लास के लिए लिखी गई है कुछ यह बात करती है:
"The Muslims of Pakistan provided all the facilities to the Hindus and Sikhs who left for India. But the Hindus and Sikhs looted the Muslims in India with both hands and they attacked their caravans, buses and trains. Therefore about one million Muslims were martyred on their way to Pakistan."
जी हाँ जानी नुक़सान हुआ था, बहुत ज़्यादा हुआ था, लेकिन हम भी दूध के धुले तो थे नहीं। यहाँ जो मारा मारी आप ने हिन्दुओं और सिखों के साथ की है उसका कोई ज़िक्र ही नहीं।
बस दस साल के बच्चे के दिमाग़ में यह बात डाल देंगें कि हमने उनको कुछ न कहा, हाँ उन्होंने हमारे साथ बहुत ख़ून ख़राबा किया। यह भी आप मज़हब के नाम पर सिखा रहे हैं.
आगे चलिए; इसी किताब में लिखा है कि:
"India invaded Lahore on the 6th of September 1965 without any ultimatum. After 17 days, Indian authorities laid down arms, acknowledging the bravery and gallantry of the Pak Army and civilians."
झूठ पर झूठ... ताशक़ंद मुआहिदे और सीस-फायर का ज़िक्र है। न पाकिस्तान ने हथियार डाले थे और न इंडिया ने. हाँ पाकिस्तान की फ़ौज बहुत बेजिगरी (दिलेरी) से लड़ी और अपने से बहुत बड़ी आर्मी को नाकों चने चबवा दिए. लेकिन क्या यह सच नहीं है कि यह जंग 'ऑपरेशन जिब्रॉल्टर' (Operation Gibraltar) के नतीजे में शुरू हुई थी?
अर्ज़ यह है कि और कुछ नहीं तो 'शहाब-नामा'ही पढ़ लें, जिसमें बहुत से लोगों के पसंदीदा (मेरे नहीं) क़ुदरतुल्लाह शहाब ने इस का ज़िक्र किया है. यह जंग उसी ऑपरेशन के नतीजे में छिड़ी थी.
('ऑपरेशन जिब्राल्टर'पाकिस्तानी फ़ौज ने घुसपैठियों की मदद से जम्मू कश्मीर को हथियाने के लिए जुलाई-अगस्त 1965 में क्रियान्वित किया। यह नाकाम रहा पर इस से बड़ी जंग छिड़ गई जो 17 दिन चलने के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराए 'सीस-फायर'पर समाप्त हुई. जंग का औपचारिक अंत जनवरी 1966 में भारतीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौते से हुआ.
क़ुदरतुल्लाह शहाब - जो अयूब खान के सलाहकार और इनफार्मेशन सेक्रेटरी रहे - ने अपनी आत्मकथा 'शहाब-नामा'में 1965 की जंग का भी ज़िक्र किया है.)
जब हम झूठ पढ़ाते हैं तो बच्चे यह सीख लेते हैं कि हमारा मुल्क सब ठीक करता है ज़्यादती हमेशा हमारे साथ होती है.
अब यह पूछने की जुरअत तो मुझ में नहीं कि कारगिल जंग किस वजह से छिड़ी थी क्योंकि बहुत से लोग उसको भी दिल पर ले जाएँगे।
ख़ैर बात कहीं और निकल गई. चलें नफ़रतों की तरफ़ वापिस चलतें हैं. पंजाब टेक्स्ट-बुक बोर्ड की दसवीं जमाअत की किताब कुछ यह बयान करती है:
"Because the Muslim religion, culture and social system are different from non-Muslims, it is impossible to cooperate with Hindus."
जब आप सीधा-सीधा हिन्दुओं से इतनी नफ़रत सिखाएँगे तो ख़ाक इस मुल्क में अमन आएगा!
पाँच से 15 साल के बच्चे यह सब पढ़-पढ़ कर बड़े होते हैं; हिन्दुओं को अपना क़ुदरती दुश्मन समझते हैं; मार-धाड़ को, जंगों को अपना जीने का तरीक़ा समझते हैं.
फिर आप कहते हैं अमन नहीं है इस मुल्क में!
KPK (ख़ैबर पख़्तूनख़्वा) की एक किताब बच्चों को यह सिखाती है कि अगर ख़ुद जिहाद नहीं कर सकते तो कम से कम जिहाद करने वालों की माली (पैसे से) मदद करो.
फिर लोग पूछते हैं यह जो मदरसे ख़ुदकश (आत्मघाती) हमलावर तैयार करते हैं उनकी फ़ंडिंग कहाँ से आती है.
बांग्लादेश के बारे में भी सुन लीजिए; एक और टेक्स्ट-बुक क्या कहती है:
"A large number of Hindu teachers were teaching in the educational institutions in East Pakistan. They produced such literature which created negative thinking in the minds of Bengalis against the people of West Pakistan."
कहते हैं आधा सच झूठ से ज़्यादा बुरा और ख़तरनाक होता है. बस यह वो आधा सच है जो हम अपने आने वाली नस्लों के दिमाग़ों में घोल रहे हैं. यहीं से बच्चे सीखते हैं कि कैसे अपनी ग़लतियाँ हमेशा दूसरों के सरों पर डाल कर बरी-अज़्ज़मा (ज़िम्मेदारी से आज़ाद) हो जाना है. यहीं से बच्चे सीखते हैं कि इस मुल्क में जो मुक़द्दस गाय (sacred cow) है उसके बारे में बात करना भी ममनू (निषिद्ध) है.
आँखें खोल कर जीना सीख लीजिए। रेत में सर देकर कहते हैं इस मुल्क में कुछ ग़लत नहीं हो रहा. ग़लती तस्लीम करना ख़राबी को सुधारने का सब से पहला क़दम है; यह माना जाए कि कोई ग़लती है.
न हम दूध के धुले हैं, न यह मुल्क हमेशा मुअजज़ों (चमत्कारों) के सहारे चलेगा। आएं आँखें खोलें; और कुछ नहीं तो अपने दिल से नफ़रत की सियाही मिटानी शुरू करें।
लंबा सफ़र है, लेकिन शुरू तो करना चाहिए।
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1. https://kbforyou.blogspot.com/2017/11/hindus-are-wicked-people-living-in.html
2. http://www.humsub.com.pk/17846/zunaira-saqib-15/